जब नींद
नहीं आती रातों को
अक्सर न जाने कितनी ही
अनलिखी नज़्में
मेरे साथ
करवट बदला करती हैं
कई बारी आँखों के
दरवाज़े खटखटाती
आँसू बन
गालों को चूमती हैं
कभी तकिये पर
सीलन सी महकती हैं
नर्म पड़ जाता है जब
यादों से
ख़ामोशी का बिछोना
नज़्में
तन्हाई को सहलाती है
धकेलती है, लफ्ज़ों को
ज़बां तक बिछने को
सफ़हे तलाशती है
वरक फैले होते है ख़्यालों के
उन्हें चुनती, चूमती
गले लगाती हैं
मेरे ऐसे
कितने ही पुलिंदे
ये बाँध रख जाती हैं
रंजो ग़म से घबराती नहीं
मेरा साथ निभाए जाती हैं
यूँही रात भर
अक्सर जब कभी
मुझे नींद नहीं आती
न जाने
कितनी अनलिखी
मेरे साथ करवट बदला करती हैं ……..

-प्रियंका सिंह























