फ़ॉलोअर

सोमवार, 31 दिसंबर 2018

दो महीने....शोभा रानी गोयल

वर्ष के दो महीने
दिसंबर और जनवरी

एक वर्ष के अंत में दस्तक देता है
दूसरा वर्ष के प्रारम्भ का आगाज़

जैसे दिन और रात का बनना
यादें दे जाता है
दूसरा उम्मीद की डोर साथ लाता है

एक को अनुभव है
दूसरे को विश्वास का साथ है

यूं तो दोनों एक ही जैसे हैं
जैसे एक-दूसरे की प्रतिलिपि

उतनी तारीखें
उतने ही दिन

उतना ही रात-दिन का मेल
पर पहचान दोनों ही अलग है

एक यादों का किस्सा है
दूसरा वादों का नगमा है

दोनों अपना कार्य बख़ूबी करते हैं

दिसंबर मुक्त होता है
जनवरी पूरे साल का भार ढोता है

जो दिसंबर दे जाए
जनवरी उसे सहर्ष लेता है
जनवरी को दिसंबर तक
लम्बा सफ़र करना है
वहीं दिसंबर एक ही क्षण में
जनवरी में तब्दील हो जाता है

देखा जाए तो हैं ये मात्र दो महीने
लेकिन दोनों ही शेष महीनों 
को जोड़कर रखते हैं
दोनों वक्त के राही

पर दोनों की मंजिल अलग-अलग
दोनों का काम अलग-अलग
दोनों की बात निराली है
- शोभा रानी गोयल

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

अमलतास......श्वेता मिश्र

छुवन तुम्हारे शब्दों की 
उठती गिरती लहरें मेरे मन की 
ऋतुएँ हो पुलकित या उदास 
साक्षी बन खड़ा है मेरे आँगन का ये अमलतास

गुच्छे बीते लम्हों की 
तुम और मैं धार समय की 
डाली पर लटकते झूमर पीले-पीले 
धूप में ठंडी छाया नहीं मुरझाया मेरे आँगन का अमलतास

सावन मेरे नैनों का 
फाल्गुन तुम्हारे रंगत का 
हैं साथ अब भी भीगे चटकीले पल 
स्नेह भर आँखों में फिर मुस्काया मेरे आँगन का अमलतास
-श्वेता मिश्र

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

जाड़े की रात


घनी धुंध और कोहरा,थर थर काँपे गात।
काटे से कटती नहीं,यह जाड़े की रात।।

किसने घट ये शीत का, दिया रात में फोड़।
नदिया पर्वत झील सब, सोए कुहरा ओढ़।।

चौपाले सूनी पड़ी, 'धूनी' 'बाले' कौन।
सर्द हवा से हो गए, रिश्ते-नाते मौन।।

गज भर की है गोदड़ी, कैसे काटें रात।
आग जला करते रहे, 'होरी' 'गोबर' बात।।

छोड़ रजाई अब उठो, सी-सी करो न जाप।
आओ खिलती धूप से, ले लो थोड़ा ताप।।

दिन भर किरणों ने लिखे, मधुर धूप के छंद।
स्याही फेरी साँझ ने, किया तमस में बंद ।।

आज कुनकुनी धूप में, कुछ पल बैठे साथ।
रिश्तों को दे उष्णता, ले हाथों में हाथ ।।

धूप अलगनी पर टंगी, घर-घर घूमे शीत ।
चुन्नू-मुन्नू को हुई, अब चूल्हे से प्रीत ।।

वाह कुमुदिनी धन्य तू, धन्य तिहारी प्रीत।
देकर उष्मा मीत को, खुद सहती है शीत ।।

-टीकम चन्दर ढोडरिया*

14...बेताल पच्चीसी....चोर क्यों रोया

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?” अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक सा...