और तो ख़ैर क्या कहा जाए
बेसबब मुंह का ज़ायका जाए .
फिर उसे ढूंढने का क्या मतलब
कोई जब इस क़दर चला जाए .
तुम ही आ जाओ आशना मेरे
इससे पहले कि कोई आ जाए .
गीत ग़ज़लों से सफ़हे ज़ख़्मी हैं
अबके एक फूल को लिखा जाए .
तुम ज़मीं घर की बात करते हो
आदमी आदमी को खा जाए .
भूख है ,आजिज़ी है, सब्र भी है
और क्या कर्ज़ कर लिया जाए .
हाथ तो काट भी लिए लेकिन
इन लकीरों का क्या किया जाए .
तुम कहीं और ब्याह कर लोगी
एक तसव्वुर जो दिल हिला जाए .
अब ये उम्मीद ,आस दफ़्न करो
अब जिया जाये बस जिया जाए .
ख़्वाब जैसे उधेड़ दें सांसे
नींद जैसे गला दबा जाए .
आके मदमस्त फिर कोई जुगनू
रात की धज्जियां उड़ा जाए.
( क़तरा से .... )
- सचिन अग्रवाल