फ़ॉलोअर

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

यूँ न था बिखरना

यूँ न टूटकर, असमय था बिखरना मुझे...

छोड़ कर यादें, वो तो तन्हा चला,
तोड़ कर अपने वादे, यूँ कहाँ वो चला,
तन्हाइयों का, ये है सिलसिला,
यूँ इस सफर में, तन्हा न था चलना मुझे!

यूँ न टूटकर, असमय था बिखरना मुझे...

कली थी, अभी ही तो खिली थी!
सजन के बाग की, मिश्री की डली थी!
था अपना वही, एक सपना वही,
यूँ न बाहों से उनकी, था निकलना मुझे!

यूँ न टूटकर, असमय था बिखरना मुझे...

गुजर चुके अब, सपनों के दिन,
अब गुजरेंगे कैसे, वक्त अपनों के बिन,
न था वास्ता, तंज लम्हों से मेरा,
यूँ तंग राह में अकेले, न था गुजरना मुझे!

यूँ न टूटकर, असमय था बिखरना मुझे...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

कभी तो .....श्वेता सिन्हा

कभी तो 

नज़र डालिए 
अपने गिरेबान में
ज़माना ही क्यों 
रहता बस 
आपके ध्यान में


कुछ ख़्वाब 
रोज गिरते हैं
पलकों से टूटकर
फिर भोर को
मिलते हैं
हसरत की दुकान में

मरता नहीं
कोई किसी से 
बिछड़े भी तो
यही बात तो 
खास है 
हम अदना इंसान में

दूरियों से 
मिटती नहीं 
गर एहसास 
सच्चे हों
दूर नज़र से 
होके रहे कोई 
दिल के मकान में

दावा न कीजिए 
साथ उम्रभर 
निभाने का
जाने वक़्त
क्या कह जाये 
चुपके से कान में

-श्वेता सिन्हा
मूल रचना

पुलवामा (14.02.2019)

पुलवामा की आज 14.02.2019 की, आतंकवादी घटना और नौजवानों / सैनिकों की वीरगति से मन आहत है....

प्रश्न ये, देश की स्वाभिमान पर,
प्रश्न ये, अपने गणतंत्र की शान पर,
जन-जन की, अभिमान पर,
प्रश्न है ये,अपने भारत की सम्मान पर।

ये वीरगति नहीं, दुर्गति है यह,
धैर्य के सीमा की, परिणति है यह,
इक भूल का, परिणाम यह,
नर्म-नीतियों का, शायद अंजाम यह!

इक ज्वाला, भड़की हैं मन में,
ज्यूँ तड़ित कहीं, कड़की है घन में,
सूख चुके हैं, आँखों के आँसू,
क्रोध भरा अब, भारत के जन-जन में!

ज्वाला, प्रतिशोध की भड़की,
ज्वालामुखी सी, धू-धू कर धधकी,
उबल रहा, क्रोध से तन-मन,
कुछ बूँदें आँखों से, लहू की है टपकी।

उबाल दे रहा, लहू नस-नस में,
मेरा अन्तर्मन, आज नहीं है वश में,
उस दुश्मन के, लहू पी आऊँ,
चैन मिले जब, वो दफ़न हो मरघट में।

दामन के ये दाग, छूटेंगे कैसे,
ऐसे मूक-बधिर, रह जाएँ हम कैसे,
छेड़ेंगे अब गगणभेदी हुंकार,
प्रतिकार बिना, त्राण पाएंगे हम कैसे!

ये आह्वान है, पुकार है, देश के गौरव और सम्मान हेतु एक निर्णायक जंग छेड़ने की, ताकि देश के दुश्मनों को दोबारा भारत की तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत तक न हो। जय हिन्द ।

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

मन के पलाश...................निशा माथुर

एक सुरमई भीगी-भीगी शाम, 
ओढ़कर चुनर चांदनी के नाम।

सुनो, तुम जरा मेरे साथ तो आओ,
कुछ मौसमों को भी बुला लाओ।
मैं ...... मैं बादल ले आऊं,
और इस भीगी-भीगी शाम में,
गुलमोहरी मधुमास चुराऊं।

सुनो, तुम आज कुछ बिगड़ो, कुछ बनो, 
और आंधियां भी संग ले आओ।
मैं........मैं चिराग बन जाऊं,
और इस आंधी संग जल-जल के,
अपना विश्वास आजमाऊं।

सुनो, तुम कुछ पल पहाड़ बन जाओ, 
और सन्नाटे से लहरा जाओ।
मैं........मैं धुंधला के सांये-सी मचलूं, 
सन्नाटे में तुम्हारा नाम पुकारूं।

सुनो, तुम आज वक्त बन जाओ,
और मेरे लिए थोड़े ठहर जाओ।
मैं............मैं फिर स्मृतियां छू लूं,
दर्पण में अनुरागी छवियां निहार लूं।

सुनो, तुम आज मेरा आंगन बन जाओ,
और मेरा सपना बनकर बिखर जाओ।
मैं...मैं मन के पलाश-सी खिल जाऊं, 
अनुरक्त पंखुरी-सी झर-झर जाऊं।

सुनो, फिर एक सुरमई भीगी-भीगी शाम, 
ओढ़कर चुनर चांदनी के नाम ।
मैं........तुम्हारी आंखों के दो मोती चुराऊं
और उसमें अपना चेहरा दर्ज कराऊं।
-निशा माथुर

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

14...बेताल पच्चीसी....चोर क्यों रोया

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?” अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक सा...