माँ के रहने पर ही पत्थर पर असर होता है
झोपड़ी हो या क़िला तब कही घर होता है
तर बतर कोई दुआओं से अगर होता है
हर किसी के लिए वो शख्स शज़र होता है
तब्सिरा फूल नहीं करता कभी खुशबू का
इश्क एलान नहीं करता अगर होता है
गुल खिला होता तो फिर वाह निकलना तय थी
वाह तो मिलती ही है शेर अलग होता है
आसरा भी मिला और फल भी मिले खाने को
लगता है पेड़ो में देवो का बसर होता है