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शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

मै तो तरसी हूँ दो गज जमीं के लिए....नीतू ठाकुर


ना हंसी के लिए ना ख़ुशी के लिए,
मै तो तरसी हूँ दो गज जमीं के लिए....  

आज आँखों से बरसे जो आंसू तेरे,
दर्द दुनिया में सब को दिखाने लगे,
दर्द की इन्तेहाँ तुमने देखी कहाँ,
जो अभी से सभी को सुनाने लगे, 

 ना हंसी के लिए ना ख़ुशी के लिए,
मै तो तरसी हूँ दो गज जमीं के लिए....

तुम  जफायें करो हम वफायें करे,
जेब देता नहीं है सनम प्यार में,
उम्र भर राह हम तेरी तकते रहे,
जान लेलोगे तुम प्यार ही प्यार में,

ना हंसी के लिए ना ख़ुशी के लिए,
मै तो तरसी हूँ दो गज जमीं के लिए....

हमने तुमको भुलाने की कोशिश जो की,
नींद अपनी सनम क्यों उड़ाने लगे,
भूल जाते हो अपनी खताओं को क्यों,
जो खतायें हमारी गिनाने लगे,

ना हंसी के लिए ना ख़ुशी के लिए,
मै तो तरसी हूँ दो गज जमीं के लिए....

चैन लूटा मेरा, ख्वाब लुटे मेरे,
लूट कर हमसे नजरे चुराने लगे,
हमने नजरे हटाई जो तुमसे सनम,
बेवफाई की तोहमत लगाने लगे, 

ना हंसी के लिए ना ख़ुशी के लिए,
मै तो तरसी हूँ दो गज जमीं के लिए....

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