शाखों ने बाँधी
पातों की झाँझर तो
हवायें बोलीं।
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पाखी गुंजाये
हवाओं में संगीत
बासंती गीत।
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ठंडे सवेरे
रातों को बिछा के
रातें थीं सोयीं ।
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गुलमोहर
तुम्हारी ललाई से
बसंत आया।
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सवेरा जागा
सूर्य सा मन मेरा
धूप सा भागा।
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राज खोलती
कुछ ख़ामोशियाँ भी
रहें बोलतीं।
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सर्दी की भोर
अलाव सूरज पे
धूप तापती।
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मीठे संवाद
चिड़ियों के खोये तो
जंगल रोये।
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मैल साँझ की
मटमैली करती
देह नभ की।
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धूप किरणें
घास पर बुनती
हरी सी दरी।
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सूखी है डाल
तितली - भँवरों का
बुरा है हाल।
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नभ के माथे
सूरज का झूमर
रोशन धूप।
-डॉ. सरस्वती माथुर