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रविवार, 28 जनवरी 2018

वो शिकार देखिये.....उपेन्द्र परवाज़

उनकी निगाहों के वार देखिये
जो बच गए घायल, वो शिकार देखिये।

मेरे दिल की कोई अब कीमत कहाँ रही 
उनके दिल के, आज खरीददार देखिये।

बारिशों में खुलने लगे है अब हुस्न के भरम 
जो रंग छोड़ने लगे, वो रुख़सार देखिये।

गुज़रे जहाँ से वहाँ हुए, क्या क्या नहीं सितम
तीमारदार भी हो गये, अब बीमार देखिये।

फ़िज़ा में हुस्न का ज़हर फैला है इस कदर 
कि उतर नहीं रहे अब, इश्क के बुखार देखिये।

जब दिल की तमन्नाओ पे फिर ही गया पानी 
तो “परवाज़” मोहब्बतों के कारोबार देखिये।
-उपेन्द्र परवाज़

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-01-2018) को "नवपल्लव परिधान" (चर्चा अंक-2863) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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