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सोमवार, 29 जनवरी 2018

अचेतन......मीना चोपड़ा


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जला करते हैं
राख से निकलकर अँधेरे
साँस के टुकड़े को
जगाने के लिये,
उम्र की नापाक
हथेली से फिसलकर
जो बियाबान जंगलों में घिरी
संकीर्ण गुफाओं में छुपा
नींद को ओढ़े हुए
सोने का बहाना करता है।

-मीना चोपड़ा
 नैनीताल 

4 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत भावों को गहराई तक शमेटे अप्रतिम रचना।

    जवाब देंहटाएं

  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-01-2017) को "है सूरज भयभीत" (चर्चा अंक-2864) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

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