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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

अत्यावश्यक सूचना-अनुरोध

ब्लाॅग के पाठकों से अनुरोध..

शायद आपको मालूम हो कि अब G+ खत्म होने वाला है। अतः G+ Platform से किए गए सारे comments स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। परन्तु जो टिप्पणी सीधे ब्लॉग पर जाकर की जाएगी, वे आगे भी बने रहेंगे।

बाद मे जब G+ profile खुद ब खुद deactivate हो जाएंगे तो G+ से किए गए सारे कमेंट्स जो अभी तो दिख रहे हैं, बाद में  दिखने भी बंद हो जाएंगे।
आवश्यक यह है कि अपने ब्लॉग के comments setting में G+ से आनेवाले comments की सेटिंग No कर ली जाय ताकि पाठक की टिप्पणी सीधे रूप से ब्लॉग पर ही अंकित की जा सके।
भविष्य की परेशानियों से बचने हेतु मैने कुछ परिवर्तन अपने ब्लॉग "कविता जीवन कलश"  (purushottamjeevankalash.bligspot.com),  "अंतहीन" (endlesspks.blogspot.com) तथा "अवधारणा" पर आवश्यक परिवर्तन अभी से ही  कर लिए हैं ।

कुछ दिनों बाद, मैं G+ profile के स्थान पर  Blogger Profile ही use करूँगा।
आपसे अनुरोध है कि अपनी टिप्पणी आप सीधे ब्लॉग पर आकर ही अंकित करें ताकि हमारा आपसी सम्पर्क-संवाद निर्बाध रूप से चलता रहे।

सादर आभार ।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना.....मुईन अहसन जज़्बी


मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना

यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मुसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त यही ज़िन्दगी फ़साना

कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक़्र-ए-आशियाना

मेरे कहकहों के ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की
मेरे आँसूओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना

कभी मैं हूँ तुझसे नाला कभी मुझसे तू परेशाँ
कभी मैं तेरा हदफ़ हूँ कभी तू मेरा निशाना

जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी
वही तार छेड़ता है मेरा सोज़-ए-शायराना
-मुईन अहसन जज़्बी 

बुधवार, 2 जनवरी 2019

छोड़ अपना आशियाना...सुरभि सोनम

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छोड़ कर वो घर पुराना,
ढूंढें न कोई ठिकाना,
बढ़ चलें हैं कदम फिर से
छोड़ अपना आशियाना।

ऊंचाई कहाँ हैं जानते,
मंज़िल नहीं हैं मानते।
डर जो कभी रोके इन्हें
उत्साह का कर हैं थामते।

कौतुहल की डोर पर
जीवन के पथ को है बढ़ाना।
बढ़ चलें हैं कदम फिर से
छोड़ अपना आशियाना।।

काँधे पर बस्ता हैं डाले,
दिल में रिश्तों को है पाले।
थक चुके हैं, पक चुके हैं,
फिर भी पग-पग हैं संभाले।

खुशियों की है खोज
कि यात्रा तो बस अब है बहाना।
बढ़ चलें हैं कदम फिर से
छोड़ अपना आशियाना।।

जो पुरानी सभ्यता है
छोड़ कर पीछे उन्हें अब।
किस्से जो बरसों पुराने
बच गए हैं निशान से सब।

की नए किस्सों को पग-पग
पर है अपने जोड़ जाना।
बढ़ चलें हैं कदम फिर से
छोड़ अपना आशियाना।।

कोई कहे बंजारा तो
बेघर सा कोई मानता है।
अनभिज्ञ! अज्ञात से परिचय
का रस कहाँ जानता है।

जोड़ कर टूटे सिरों को,
विश्व अपना है रचाना।
बढ़ चलें हैं कदम फिर से
छोड़ अपना आशियाना।।
- सुरभि सोनम

14...बेताल पच्चीसी....चोर क्यों रोया

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?” अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक सा...