
मिट न सकी
अंतहीन भूख
अभ्यंतर से
मेरे अभ्यंतर से
बार बार पुनः
जन्म हुआ
चाहिये मुझको
भरपाई
तृप्त भरपाई
संकीर्ण से अनंत
तक की प्यास
पुनः बुझानी है
कालविजयी दशाओं में
अक्सर भूखा था
उस रोज़
और प्यासा था
जब फूटती थी
एक विशाल नदी
प्रवाही मन से
निशब्द है ज़ुबान
आज
भूख व्यक्त नही करती
उगती है
विलीन हो जाती है
पर हर पहलू
एक भूख है
अंतहीन भूख
-अंशू सिंह
जन्म 30 अक्टूबर 1987
वाराणसी काशी हिन्दू वि वि
से स्नातक एवं स्नातकोत्तर