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गुरुवार, 25 जनवरी 2018

अब जिया जाये बस जिया जाए.....सचिन अग्रवाल

और तो ख़ैर क्या कहा जाए 
बेसबब मुंह का ज़ायका जाए .

फिर उसे ढूंढने का क्या मतलब
कोई जब इस क़दर चला जाए .

तुम ही आ जाओ आशना मेरे
इससे पहले कि कोई आ जाए .

गीत ग़ज़लों से सफ़हे ज़ख़्मी हैं
अबके एक फूल को लिखा जाए .

तुम ज़मीं घर की बात करते हो
आदमी आदमी को खा जाए .

भूख है ,आजिज़ी है, सब्र भी है
और क्या कर्ज़ कर लिया जाए .

हाथ तो काट भी लिए लेकिन
इन लकीरों का क्या किया जाए .

तुम कहीं और ब्याह कर लोगी
एक तसव्वुर जो दिल हिला जाए .

अब ये उम्मीद ,आस दफ़्न करो
अब जिया जाये बस जिया जाए .

ख़्वाब जैसे उधेड़ दें सांसे
नींद जैसे गला दबा जाए .

आके मदमस्त फिर कोई जुगनू
रात की धज्जियां उड़ा जाए.

( क़तरा से .... )

- सचिन अग्रवाल

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-01-2018) को "गणचन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-2860) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    गणतन्त्र दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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