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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

कभी तो .....श्वेता सिन्हा

कभी तो 

नज़र डालिए 
अपने गिरेबान में
ज़माना ही क्यों 
रहता बस 
आपके ध्यान में


कुछ ख़्वाब 
रोज गिरते हैं
पलकों से टूटकर
फिर भोर को
मिलते हैं
हसरत की दुकान में

मरता नहीं
कोई किसी से 
बिछड़े भी तो
यही बात तो 
खास है 
हम अदना इंसान में

दूरियों से 
मिटती नहीं 
गर एहसास 
सच्चे हों
दूर नज़र से 
होके रहे कोई 
दिल के मकान में

दावा न कीजिए 
साथ उम्रभर 
निभाने का
जाने वक़्त
क्या कह जाये 
चुपके से कान में

-श्वेता सिन्हा
मूल रचना

3 टिप्‍पणियां:

  1. श्वेता ! दूसरों को कोसने से या दूसरों पर आरोप लगाने से ही जब उनके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं तो वो अपने गिरेबान में क्यों झांकें? वैसे भी उन्हें वहां अँधेरा मिलेगा, मक्कारी मिलेगी, धोखा मिलेगा और बेवफ़ाई मिलेगी.

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  2. हकीकत बयां करती है रचना, बहुत ही सुन्दर

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