धूप का दम निकल गया
ये न समझो उजाला गया
पत्थरों की नुमाइश हुई
फूल क़दमों में डाला गया
शक़ तो खुद की वफ़ाओं पे था
और मिरा दिल ख़ँगाला गया
भूख को यूँ तसल्ली हुई
पत्तियों को उबाला गया
बच्चे जब चैन से सो गए
हलक़ से तब निवाला गया
चाहतों की गुज़ारिश भी थी
साँप भी घर में पाला गया
है पहाड़ों का सर भी वहीं
रास्ता भी निकाला गया
-सचिन अग्रवाल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-01-2018) को "हमारा सूरज" (चर्चा अंक-2843) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 09/01/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह.....लाज़वाब👌
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत लिखा आपने...!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंPlease Read Hindi Stoay and Other Important Information in Our Hindi Blog Link are -> Hindi Story
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