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मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

अमलतास......श्वेता मिश्र

छुवन तुम्हारे शब्दों की 
उठती गिरती लहरें मेरे मन की 
ऋतुएँ हो पुलकित या उदास 
साक्षी बन खड़ा है मेरे आँगन का ये अमलतास

गुच्छे बीते लम्हों की 
तुम और मैं धार समय की 
डाली पर लटकते झूमर पीले-पीले 
धूप में ठंडी छाया नहीं मुरझाया मेरे आँगन का अमलतास

सावन मेरे नैनों का 
फाल्गुन तुम्हारे रंगत का 
हैं साथ अब भी भीगे चटकीले पल 
स्नेह भर आँखों में फिर मुस्काया मेरे आँगन का अमलतास
-श्वेता मिश्र

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर श्वेता जी! ऐसी ही एक सुन्दर कविता और छाया-चित्र गुलमोहर पर भी हो जाए.

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    1. सर ...गुलमोहर पर भी एक कविता लिखी है ...और कई जगह भी प्रकाशित हुई है ...हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिए ....सादर

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  2. अमलतास के लटकती लट जब झूमती है ... तो सावन और ठिठुरते पल एक साथ जीवन में उतर आते हैं ...
    बहुत सुन्दर रचा है प्रकृति के इन रंगों को ...

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    1. सर ...तपिश में सुखद अहसास है अमलतास ...प्रकृति सातो रंग समेटे हुए हैं ...सुखद अहसास की छावं !! बहुत बहुत आभार ....सादर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-12-2018) को "यीशु, अटल जी एंड मालवीय जी" (चर्चा अंक-3197) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. अहसासों को प्रकृति के साथ बड़ी ही खुबसूरती से पिरोया है आपने श्‍वेता जी

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    1. उत्साहवर्धन के लिए तहे दिल से शुक्रिया... काभर ...सादर

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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