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रविवार, 18 फ़रवरी 2018

प्रलय.......डॉ. जेन्नी शबनम


नहीं मालूम कौन ले गया 
रोटी को और सपनों को 
सिरहाने की नींद को 
और तन के ठौर को 
राह दिखाते ध्रुव तारे को 
और दिन के उजाले को 
मन की छाँव को 
और अपनों के गाँव को 
धधकती धरती और दहकता सूरज 
बौखलाई नदी और चीखता मौसम 
बाट जोह रहा है 
मेरे पिघलने का 
मेरे बिखरने का 
मैं ढहूँ तो एक बात हो 
मैं मिटूँ तो कोई बात हो!

-डॉ. जेन्नी शबनम

8 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    हर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
    दिनांक 020/02/2018 को.....
    आप की रचना का लिंक होगा.....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर......
    आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-02-2017) को "सेमल ने ऋतुराज सजाया" (चर्चा अंक-2886) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

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