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गुरुवार, 21 सितंबर 2017

टूटकर फूल शाखों से....श्वेता सिन्हा



टूटकर फूल शाख़ों से झड़ रहे हैं।
ठाठ ज़र्द पत्तों के उजड़ रहे हैं।।

भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ोंं के सीवन अब उधड़ रहे हैं।

अंजुरी में कितना जमा हो ज़िदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे हैं।

ख़्वाहिशों की भीड़ से परेशान दिल
और हसरतें आपस में लड़ रहे हैं।

राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे हैं।

      #श्वेता🍁

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार आपका दी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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  2. अति सुन्दर !
    वाह !
    शुभ संध्या।
    एक ग़ज़ल जिसका हरेक शेर जीवन की किसी न किसी परिस्थिति का प्रतिनिधि होकर उभरा है।
    इतनी सरलता सृजन को लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने में मददगार है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं श्वेता जी।

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  3. वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीया ।

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  4. टूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है
    ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है।

    बहुत ख़ूब श्वेता जी। waahhh। ख़्वाहिशों और हसरतों के बीच के ज़हीन झगड़े का हसीन तब्सिरा। पूरी रचना बेहद दिलकश। सादर

    ख़्वाहिश हसरत लड़ रहीं, परेशान है दिल
    जोर शोर की ज़हद में, फिसल जायें ना पल।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-09-2017) को "खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं" (चर्चा अंक 2735) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बहुत खूब श्वेता जी..
    सभी भावों में निपुण,👌

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  7. आदरणीय श्वेता जी बहुत अच्छी रचना है ----- एकदम आपकी प्रतिभा के अनुरूप --- सस्नेह --

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  8. बहुत ही शानदार।

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  9. ख्वाहिशों की भीड़ में हसरतों का जाल ...
    क्या गज़ब की ग़ज़ल हुयी है ... हर शेर लाजवाब ...

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