तेरे मिलने को बेकल हो गए
मगर ये लोग पागल हो गए हैं
बहारें लेके आए थे जहां तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गए हैं
यहां तक बढ़गए आलम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गए हैं
कहां तक ताब लाए नातवां दिल
कि सदमें अब मुसलसल हो गए हैं
उन्हें सदियों न भूलेगा जमाना
यहां जो हादसे कल हो गए हैं
जिन्हें हम देख कर जीते थे नासिर
वो लोग आंखों से ओझल हो गए हैं
- नासिर काजमी..
वाह्ह्ह...शानदार गज़ल👌👌
जवाब देंहटाएंलाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंकहां तक ताम लाए नातवां दिल
जवाब देंहटाएंकि सदमें अब मुसलसल हो गए हैं।
बहुत खुभ। शानदार।