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बुधवार, 20 सितंबर 2017

यहां जो हादसे कल हो गए हैं....नासिर काजमी

तेरे मिलने को बेकल हो गए
मगर ये लोग पागल हो गए हैं

बहारें लेके आए थे जहां तुम
वो घर सुनसान जंगल हो गए हैं

यहां तक बढ़गए आलम-ए-हस्ती
कि दिल के हौसले शल हो गए हैं

कहां तक ताब लाए नातवां दिल
कि सदमें अब मुसलसल हो गए हैं

उन्हें सदियों न भूलेगा जमाना
यहां जो हादसे कल हो गए हैं

जिन्हें हम देख कर जीते थे नासिर
वो लोग आंखों से ओझल हो गए हैं
- नासिर काजमी..

3 टिप्‍पणियां:

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