टूटकर फूल शाख़ों से झड़ रहे हैं।
ठाठ ज़र्द पत्तों के उजड़ रहे हैं।।
भटके परिंदे छाँव की तलाश में
नीड़ोंं के सीवन अब उधड़ रहे हैं।
अंजुरी में कितना जमा हो ज़िदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे हैं।
ख़्वाहिशों की भीड़ से परेशान दिल
और हसरतें आपस में लड़ रहे हैं।
राह में बिछे फूल़ो का नज़ारा है
फिर आँख में काँटे कैसे गड़ रहे हैं।
#श्वेता🍁
बहुत बहुत आभार आपका दी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंवाह !
शुभ संध्या।
एक ग़ज़ल जिसका हरेक शेर जीवन की किसी न किसी परिस्थिति का प्रतिनिधि होकर उभरा है।
इतनी सरलता सृजन को लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने में मददगार है।
बधाई एवं शुभकामनाएं श्वेता जी।
वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंटूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है
जवाब देंहटाएंठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है।
बहुत ख़ूब श्वेता जी। waahhh। ख़्वाहिशों और हसरतों के बीच के ज़हीन झगड़े का हसीन तब्सिरा। पूरी रचना बेहद दिलकश। सादर
ख़्वाहिश हसरत लड़ रहीं, परेशान है दिल
जोर शोर की ज़हद में, फिसल जायें ना पल।
क्या बात है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-09-2017) को "खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं" (चर्चा अंक 2735) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब श्वेता जी..
जवाब देंहटाएंसभी भावों में निपुण,👌
वाह!
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्वेता जी बहुत अच्छी रचना है ----- एकदम आपकी प्रतिभा के अनुरूप --- सस्नेह --
जवाब देंहटाएंअच्छी शायरी
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जवाब देंहटाएंPrecioso gracias por estas lindas letras saludos cordiales
bahut achchhe sher Shweta .
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति....
बहुत ही शानदार।
जवाब देंहटाएंख्वाहिशों की भीड़ में हसरतों का जाल ...
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब की ग़ज़ल हुयी है ... हर शेर लाजवाब ...