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सोमवार, 4 दिसंबर 2017

मन्नत का धागा......श्वेता सिन्हा



मुँह मोड़ कर मन की
आशाओं को मारना
आसां नहीं होता
बहारों के मौसम में,
खुशियों के बाग में.
काँटों को पालना
बहती धार से बाहर
नावों को खीचना
प्रेम भरा मन लबालब
छलकने को आतुर
कराने को तत्पर रसपान
भरे पात्र मधु के अधरों से
आकर लगे हो जब,
उस क्षण प्यासे होकर भी
घट को ठुकरा देना,
जलते हृदय के भावों को
मुस्कान में अपनी छुपा लेना,
अश्कों का कतरा  पीकर
खोखली हँसी जीकर,
स्वयं को परिपूर्ण बतलाना
दंभ से नज़रें फेर कर गुजरना,
हंसकर मिलने का आडम्बर
भींगी पलकों की कोरों से
टपकते ख्वाबों को देखना,
तन्हा खामोश ख्यालों में
एक-एक पल बस तुमको जीना
कितना मुश्किल है
तुम न समझ पाओगे कभी,
पत्थर न होकर भी
पत्थरों की तरह ठोकरों में रहना,
मन दर्पण में तेरी
अदृश्य मूरत बसाकर,
अनगिनत बार शब्द बाणों से
आहत टूटकर चूर होना
फिर से स्पंदनहीन,भावहीन
बनकर तुम्हारे लिए
बस तुम्हारी खातिर,
दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
मन्नत के धागे के सिवा और
क्या हो सकती हूँ मैं
तुम्हारे तृप्त जीवन में।

10 टिप्‍पणियां:

  1. अनगिनत बार शब्द बाणों से
    आहत टूटकर चूर होना
    फिर से स्पंदनहीन,भावहीन
    बनकर तुम्हारे लिए
    बस तुम्हारी खातिर,
    दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
    मन्नत के धागे के सिवा और
    क्या हो सकती हूँ मैं
    तुम्हारे तृप्त जीवन में।
    .....समर्पण की पराकाष्ठा....
    सुंदर अतुकान्त रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही भावुक और मर्मस्पर्शी रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन ...कितनी कोमल कितनी सहनशील दिल में अनगिनत स्नेह समेटे..वो अक्सर मन्नत का धागा कभी मां बनकर,कभी प्रेयसी बन कर बांधती हैं , बहुत ही खूबसूरती से एक स्त्री के मनोभावों को जिवित करती ... हुई मार्मिक अभिव्यक्ति....!

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  4. बहुत सूंदर और शानदार
    भावुक और मर्मस्पर्शी

    जवाब देंहटाएं
  5. मन्नत का धागा, जिसने न पढ़ा वो अभागा.
    बार बार यही ख्याल आ रहा है कि कितनी कोमलता समेटे है ये एहसास कि कोइ किसी के लिए मन्नत का धागा बांधता है, अपनी तकलीफ, दर्द को परे रख मुस्कुराता है , खुद के होने को भूलकर दूसरे के लिए जीता है .
    आप की कविता वर्तमान समय में स्त्री की कोमल भावनाओं का अनूठा दर्पण है. हर भार आपकी कविता पढ़कर खो जाती हूँ.
    लाज़वाब
    सादर

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  6. एक डोरी
    मन्नत की
    मेरी भी
    न..भगवान से नहीं
    माँगती कुछ
    माँगती हूँ मैं..
    अपने पाठकों से..और
    अपने सहयोगियों से
    न छोड़िएगा
    साथ मेरा...पल
    हरपल रहिएगा
    थामें मेरा हाँथ
    अपने हांथ से
    बेहतरीन मन्नत
    सादर

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  7. वाह! मानो स्वयं को एक मन्नत का धागा मानकर पूरी तरह उस धागा को ही जीवंत कर दिया।

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  8. बस तुम्हारी खातिर,
    दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
    मन्नत के धागे के सिवा और
    क्या हो सकती हूँ मैं
    तुम्हारे तृप्त जीवन में।
    मन्नत का धागा बनना किसी के लिए....इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा ?

    जवाब देंहटाएं
  9. बस तुम्हारी खातिर,
    दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
    मन्नत के धागे के सिवा और
    क्या हो सकती हूँ मैं
    तुम्हारे तृप्त जीवन में।
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  10. मन्नत का धागा
    बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना....
    पत्थर न होकर भी
    पत्थरों की तरह ठोकर में रहना
    फिर भी मन्नत माँगना उन्हीं के लिए कहाँँ आसान है...
    बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति...
    वाह!!!

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