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रविवार, 3 दिसंबर 2017

दर्पण दर्शन .....कुसुम कोठारी


ख्वाहिशों के शोणित 
बीजों का नाश 
संतोष रूपी भवानी के
हाथों सम्भव है 
वही तृप्त जीवन का सार है ।
"ख्वाहिशों का अंत "। 

ध्यान मे लीन हो
मन मे एकाग्रता हो 
मौन का सुस्वादन
पियूष बूंद सम 
अजर अविनाशी। 
शून्य सा, "मौन"। 

मन की गति है 
क्या सुख क्या दुख 
आत्मा मे लीन हो 
भव बंधनो की 
गति पर पूर्ण विराम ही
परम सुख,.. "दुख का अंत" । 

पुनः पुनः संसार 
मे बांधता 
अनंतानंत भ्रमण 
मे फसाता 
भौतिक संसाधन।
" यही है बंधन"। 

स्वयं के मन सा 
दर्पण 
भली बुरी सब 
दर्शाता 
हां खुद को छलता 
मानव।
" दर्पण दर्शन "।

- कुसुम कोठारी

9 टिप्‍पणियां:

  1. स्थितप्रज्ञ मानसरोवर झील में झिलमिलाता मोक्ष का धवल चाँद!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निशब्द! ऐसी सराहना सचमुच स्थितिप्रज्ञ।।
      सादर आभार।

      हटाएं
  2. मानव स्वयं चाहता हिया इस आवरण में रहना ... आँखें बंद कर के रहना ... लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बहुत बहुत आभार गुणी जनों का आशीर्वाद मिल जाय रचनाकार को तो हौसला बढ़ता है।
      शुभ दिवस।

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर रचना
    जब पहली बार उनकी रचना विविधा पर पढ़ी
    तब स्वप्नपूर्ती सा अनुभव हुआ अब तो ख्वाब परवान चढ रहें है
    कुसुमजी के आने से मंच की रौनक बढ गई है
    बहुत बहुत आभार आप का

    जवाब देंहटाएं

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