वो आखरी खत जो तुमने लिखा था
तेरे हर खत से कितना जुदा था
मजबूरियों का वास्ता देकर मुकर जाना तेरा
गुनहगार वो वक़्त था या खुदा था
गुनहगार वो वक़्त था या खुदा था
बड़ी मुश्किल से समेटा था खुद को
वो पल भी मुश्किल बड़ा था
शिकायत करते भी तो किस से करते
जब अपना मुकद्दर ही जुदा था
जल रहे थे ख्वाब मिट रहे थे अरमान
तू लाचार और मेरा प्यार बेबस खडा था
मेरा दिल ही जनता है क्या गुजरी थी
जब आंसुओं में डूबा वो आखरी खत पढ़ा था
- नीतू ठाकुर
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह्ह्ह प्रिय नीतू...लाज़वाब,भावपूर्ण अति सुंदर👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत खूबसूरत लिखा आपने...वो आखिरी खत भावनाओं से ओत-प्रोत अहसासो का पैमाना..!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआखिरी ख़त के बहाने से अधूरे प्रेम की बहुत ही अनुपम और मर्मस्पर्शी गाथा लिख डाली आपने -- प्रिय नीतू जी | हर शेर बहुत ही हृदयस्पर्शी है | एक को ज्यादा महत्व दूंगी तो दूसरों की महिमा घट जायेगी | बहुत सराहनीय है आपकी भाव भरी रचना | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआप की रचना को शुक्रवार 22 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी भाव सिमटे है आपकी रचना में .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
उम्दा अशआर
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत खूब ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंवाह! कमाल का शब्दशिल्प! मोहब्बत पर ऐसे मक़ाम आते हैं जब कशमकश से निकलकर आरज़ू अपनी रहगुज़र तय करती है।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों में उतरता शब्द-शब्द. नर्म एहसासों का नज़ाकतभरा मुज़ाहिरा करती बेहतरीन रचना। बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीया नीतू जी।
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंवाह!!नीतू जी वाह!!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआखिरी खत.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन, बहुत सुन्दर
वाह!!!