रफ्ता -रफ्ता, बेलौस मेरी
रूहें कलम लिखने लगी
हम नशीनो नज़्म मेरी
यकसां गुनगुनाने भी लगी !
छू गई चेहरे को मेरी
बज़्म की संदल हवा
बिन लिखे अल्फाज़ मेरे
मुझको सुनाने सी लगी !
राहते -तलब है कोई
या इश्किया बीमार है
बेवजह रुखसार पे
रूनाइयाँ छाने लगी !
एक तो महकी फिजा है
उस पर तरन्नुम सा खयाल
छन्न से कुछ यादें खनक के
तन्हाई सजाने सी लगी !
डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआप की लेखनी को सलाम
क्या खूब लिखा है
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत.. पढ़ते ही लगा किसी रुहानी सी जगह में पहुंच गई बहुत खूबसूरत शब्दों का चयन किया है आपने बधाई..!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाआआह अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत....
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना
वाह!!!