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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

आँख खुली घेरती....विजय किशोर मानव

आंख खुली घेरती सलाखें हमको मिलीं
पिंजरे का गगन कटी पांखें हमको मिलीं

अनगिनत हिरन सोने के फिरते आसपास,
वनवासी सीता की आंखें हमको मिलीं

नंदनवन में जन्मे, गंध में नहाए पर
हम बबूल, रोज़ कटी शाखें हमको मिलीं

अदनों को ताज-तख़्त, राज-पाट क्या नहीं
और सर छुपाने को ताखें हमको मिलीं

उम्र कटी कंधों पर बुझी मशालें ढोते
आग कहां धुआं कभी, राखें हमको मिलीं

   -विजय किशोर मानव

12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ संध्या सखी श्वेता
    आभार
    सादर

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 15 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्र कटी कंधों पर बुझी मशालें ढोते
    आग कहां धुआं कभी, राखें हमको मिलीं।

    बहुत ही उम्दा रचना। सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्र कटी कंधों पर बुझी मशालें ढोते
    आग कहां धुआं कभी, राखें हमको मिलीं।

    बहुत ही उम्दा रचना। सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर
    एक अच्छी ग़ज़ल
    ये शेर भा गया
    आंख खुली घेरती सलाखें हमको मिलीं
    पिंजरे का गगन कटी पांखें हमको मिलीं
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ... गहरे कटाक्ष करते हुए शेर ... लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
    "हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  8. बहुत सुन्दर रचना ,आभार "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  9. जीवन की विसंगतियों को बख़ूबी चित्रित किया है। सुन्दर प्रस्तुति।

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