एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों
एक मेले में पहुंचा हुमकता हुआ
जी मचलता था हर इक शय पे मगर
जेब ख़ाली थी, कुछ मोल न ले सका
लौट आया, लिए हसरते सैंकड़ों
एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों
खैर मेहरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है उसी शान से
जी में आता है इक इक दुकान मोल लूँ
जो मैं चाहूँ तो सारा जहां मोल लूं
नारसाई का अब में धड़का कहां
पर वो छोटा सा अल्हड़ सा लड़का कहां ?
-इब्ने इंशा
वाह्ह्ह...लाज़वाब👌👌
जवाब देंहटाएंमशहूर पाकिस्तानी शायर इब्ने इंसा ( जिन्हें हम उनकी एक ग़ज़ल "कल चौदहवीं की रात थी ,सब भर रहा चर्चा तेरा " से ज़्यादा जानते हैं ) की मर्मस्पर्शी रचना साझा करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंइब्ने इंशा
जवाब देंहटाएंहर किस्म की
कविता
ग़ज़ल
नज़्मों
की खदान
...आदर सहित
बहुत सुंदर। बहुत ख़ूब।।।
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