आंख खुली घेरती सलाखें हमको मिलीं
पिंजरे का गगन कटी पांखें हमको मिलीं
अनगिनत हिरन सोने के फिरते आसपास,
वनवासी सीता की आंखें हमको मिलीं
नंदनवन में जन्मे, गंध में नहाए पर
हम बबूल, रोज़ कटी शाखें हमको मिलीं
अदनों को ताज-तख़्त, राज-पाट क्या नहीं
और सर छुपाने को ताखें हमको मिलीं
उम्र कटी कंधों पर बुझी मशालें ढोते
आग कहां धुआं कभी, राखें हमको मिलीं
-विजय किशोर मानव
शुभ संध्या सखी श्वेता
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 15 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंउम्र कटी कंधों पर बुझी मशालें ढोते
जवाब देंहटाएंआग कहां धुआं कभी, राखें हमको मिलीं।
बहुत ही उम्दा रचना। सुंदर संकलन।
उम्र कटी कंधों पर बुझी मशालें ढोते
जवाब देंहटाएंआग कहां धुआं कभी, राखें हमको मिलीं।
बहुत ही उम्दा रचना। सुंदर संकलन।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंएक अच्छी ग़ज़ल
ये शेर भा गया
आंख खुली घेरती सलाखें हमको मिलीं
पिंजरे का गगन कटी पांखें हमको मिलीं
आदर सहित
बहुत ही सुंदर !
जवाब देंहटाएंवाह ... गहरे कटाक्ष करते हुए शेर ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
जवाब देंहटाएं"हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
लाजवाब गजल....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ,आभार "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंजीवन की विसंगतियों को बख़ूबी चित्रित किया है। सुन्दर प्रस्तुति।
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