आज से सदियों पहले
शायद सृष्टि के समय
मैंने दिल की किताब से
कुछ अक्षर चुराये।
चोरी तो चोरी है - कभी पकड़ी ही जायेगी
घबराई सी मैं
उन अक्षरों को लेकर भटकती रही
फिर मैंने वो अक्षर
एक कली में छुपा दिए
अगले ही दिन
वो कली चटकी और फूल बनी
अब फिर डर लगा मुझे
सबको पता चल जायेगा
वहाँ से अक्षर उठा कर
मैंने फूल पर रख दिए
थोड़ी देर में ही वहाँ
भंवरे गुनगुनाने लगे
फिर वो अक्षर मैंने
चुपके से उठाये - और
आसमान में उछाल दिए
ये सब क्या हो गया
मैंने तो सिर्फ ढाई अक्षर ही चुराये थे
ये तो लाखों तारे बन गए
काश, मैं वो अक्षर अपने
दिल में ही रख लेती|
-रश्मि भटनागर
वाह....
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह...बहुत सुंदर👌
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (04-01-2018) को "देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री फुले" (चर्चा अंक-2838) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'