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गुरुवार, 4 जनवरी 2018

चंचल हिरनी सी हूँ मैं !.....डॉ. इन्दिरा गुप्ता


मैं अलबेली 
रहती अकेली 
अपनी सहेली 
सी हूँ मैं ! 

लहरा कर
बल खाकर 
चलती 
विश्व सुँदरी 
सी हूँ मैं ! 

उम्र हाल ना 
मेरा देखो 
मन संतुलन
रखती 
हूँ मैं ! 

सधे हुऐ
कदमो से नित 
जल भर
कर लाती 
हूँ मैं

बोल अनसुने 
लब पर रखती 
कुंतल काँधे 
बिखेरती 
हूँ मैं ! 

मंथर गति से 
थम कर 
चलती
चंचल हिरनी
सी हूँ मैं ! 

डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सखी अप्रतिम रचना। उम्र हाल न मेरा देखो मन संतुलन रखती मैं... अद्भुत

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-01-2018) को "सुधरें सबके हाल" (चर्चा अंक-2839) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. लाज़वाब...बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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