ज्यों लकीरों की बात करते हैं
दिल के चीरों की बात करते हैं
ये तड़प तो वचन ही दे सकते
आप तीरों की बात करते हैं
हम बुरे थे सुनी-सुनाई पर
अब नज़ीरों की बात करते हैं
जो बजे ही नहीं हैं मुद्दत से
मन-मजीरों की बात करते हैं
आत्माएं मरा करें जिन पर
उन शरीरों की बात करते हैं
इश्क़ में हो गये निकम्मे जो
उन फ़क़ीरों की बात करते हैं
जो समझते हैं प्यार को दौलत
उन अमीरों की बात करते हैं
खा गये मात जो पियादों से
उन वज़ीरों की बात करते हैं
-केशव शरण
शुभकामनाएं, सपरिवार स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब
जवाब देंहटाएं