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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

छोड़ के मथुरा-काशी...नीतू ठाकुर

आन बसों तुम मोरी नगरिया,
हे घट घट के वासी
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
कान्हा तुम हो प्यार का सागर,
फिर क्यूँ  सुनी मोरी गागर,
कौन कसूर भयो रे मोसे,
जो मै रह गई प्यासी,
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
जिन नैनों में कृष्ण बसे हों,
उन नैनों में कौन समाये,
नैना तेरे दरस को तरसे,
पागल मन कैसे समझायें,
एक झलक दिखला दो कन्हैया,
कर दो दूर उदासी,
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
तुम तो हो छलिया बनवारी,
नैन मिलाके सब कुछ हारी,
तुम बैठे मथुरा में जाकर,
मन रोये अब रतिया सारी,
रोते रोते प्राण तजूँगी,
देर ना करना जरासी, 
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी     
सूना मधुबन, सुना पनघट,
आज ना मै छोडूंगी ये हठ,
हर पल तेरी याद सताये,
कान्हा तुम कैसे बिसराये,
तुम हो गोकुल वासी 
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
- नीतू ठाकुर 

3 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों तूं अधीर भई बावरी
    क्यों विकल हृदय हुई जात
    कान्हा भुखे प्रेम के
    नंगे पाव चली आय।

    विरह से ओत प्रोत श्रृंगार कविता सुंदर सरस।
    सुप्रभात शुभ दिवस।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत रचना नीतू जी।
    आपकी लेखनी का विविधापूर्ण रंग लुभावना है बहुत।
    लिखते रहिये मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ है।

    जवाब देंहटाएं

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