मैं शब्द शब्द चुनती हूं
अर्थ सजाती हूं
दिल की पाती ,
नेह स्याही लिख आती हूं
फूलों से थोड़ा रंग,
थोड़ी महक चुराती हूं
फिर खोल अंजुरी हवा मे
बिखराती हूं
चंदा की चांदनी
आंखो मे भरती हूं
और खोल आंखे
मधुर सपने बुनती हूं
सूरज की किरणो को
जन जन पहुँचाती हूं
हवा की सरगम पर
गीत गुनगुनाती हूं
बूझो कौन ?
नही पता!
मैं ही बतलाती हूं
जब निराशा छाने लगे
मैं "आशा" कहलाती हूं
कुसुम कोठारी
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसब कुछ कह दिया आपने
कहने को कुछ शेष रहा ही नहीं
बस बार बार पढ़ते रहो
नीतू जी शुक्रिया। आपने मन मोह लिया।
हटाएंशुभ संध्या।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया सादर आभार।
हटाएंशुभ संध्या ।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
हटाएंशुभ संध्या ।
जी सादर आभार।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या ।
यशोदा दी आपका बहुत सा आभार आपने मेरी रचचना को विविधा मे स्थान दिया।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या।