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बुधवार, 6 दिसंबर 2017

दिल की पाती....कुसुम कोठारी


मैं शब्द शब्द चुनती हूं
अर्थ सजाती हूं
दिल की पाती ,
नेह स्याही लिख आती हूं
फूलों से थोड़ा रंग,
थोड़ी महक चुराती हूं
फिर खोल अंजुरी हवा मे 
बिखराती हूं 
चंदा की चांदनी
आंखो मे भरती हूं
और खोल आंखे
मधुर सपने बुनती हूं
सूरज की किरणो को
जन जन पहुँचाती हूं
हवा की सरगम पर
गीत गुनगुनाती हूं
बूझो कौन ?
नही पता!
मैं ही बतलाती हूं 
जब निराशा छाने लगे
मैं "आशा" कहलाती हूं
कुसुम कोठारी 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना
    सब कुछ कह दिया आपने
    कहने को कुछ शेष रहा ही नहीं
    बस बार बार पढ़ते रहो

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नीतू जी शुक्रिया। आपने मन मोह लिया।
      शुभ संध्या।

      हटाएं
  2. यशोदा दी आपका बहुत सा आभार आपने मेरी रचचना को विविधा मे स्थान दिया।
    शुभ संध्या।

    जवाब देंहटाएं

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