भौंचक रहा गये ज्ञानी ऊधौ
बुद्धि लगी चकराने
भोली ग्वालिन अनपढ़ जाहिल
कैसो ज्ञान बखाने !
एक तमक कर बोली ग्वालिन
क्या आये हो लेने
मूल धन अक्रूर ले गये
तुम क्या आये ब्याज के लाने !
कुब्जा के कहे आये हो तो
इतनी बात समझ लो
दूध दही मै फर्क ना जाने
वाकी बातन पर का जानो !
हमरो मारग नेह को
फूलन की सी क्यारी
निर्गुण कंटक बोय के
काहे बर्बाद कर रहे यारी !
तुम तो ज्ञानी ध्यानी ऊधौ
एक बात कहो साँची
कहीँ सुनी नारी जोग लियो है
का वेद पुराण ना बाँची !
जाओ अब और ना रुकना
बात बिगड़ जायेगी
कान्हा पे रिस आय रही है
तुम पे उतर जायेगी !
एक तो इति दूर बैठे है
ऊपर से ज्ञान बघारे
निर्गुण -सगुण को भेद बतरावे
का हमें बावरी जाने !
नेह -ज्ञान से एक चुननो थो
नेह भाव चुन लीनो
बीते उमरिया अब चाहे जैसी
अब नहीँ पालो बदलनौ !
कहना जाके श्याम को
तनि चिंतित ना होय
आनौ हो तो खुद ही आये
और ना भेजे कोय !
डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जोशी ज़ी
हटाएंआभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमनको भा गई ....बधाई और शुभकामनायें
आपका बहुत आभार नीतू ज़ी ..उत्साह वर्धन के लिये .
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