हवा लगी पश्चिम की ,
सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।
ईस्वी सन तो याद रहा ,
पर अपना संवत्सर भूल गए ।।
चारों तरफ नए साल का ,
ऐसा मचा है हो-हल्ला ।
बेगानी शादी में नाचे ,
जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।
धरती ठिठुर रही सर्दी से ,
घना कुहासा छाया है ।
कैसा ये नववर्ष है ,
जिससे सूरज भी शरमाया है ।।
सूनी है पेड़ों की डालें ,
फूल नहीं हैं उपवन में ।
पर्वत ढके बर्फ से सारे ,
रंग कहां है जीवन में ।।
बाट जोह रही सारी प्रकृति...
-सतीष शशांक
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमनको भा गई ....बधाई और शुभकामनायें
बढ़िया
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