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मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

हवा लगी पश्चिम की...सतीष शशांक

हवा लगी पश्चिम की ,
सारे कुप्पा बनकर फूल गए । 
ईस्वी सन तो याद रहा , 
पर अपना संवत्सर भूल गए ।। 
चारों तरफ नए साल का , 
ऐसा मचा है हो-हल्ला । 
बेगानी शादी में नाचे ,
जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।
धरती ठिठुर रही सर्दी से , 
घना कुहासा छाया है । 
कैसा ये नववर्ष है , 
जिससे सूरज भी शरमाया है ।। 
सूनी है पेड़ों की डालें , 
फूल नहीं हैं उपवन में । 
पर्वत ढके बर्फ से सारे , 
रंग कहां है जीवन में ।। 
बाट जोह रही सारी प्रकृति...
-सतीष शशांक

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