दिन आजकल धूप से परेशान मिलती है,
साँवली शाम ऊँघती बहुत हैरान मिलती है।
रात के दामन पर सलवटें कम ही पड़ती है ,
टोहती चाँदनी से अजनबी पहचान मिलती है।
स्याह आसमां पर सितारे नज़्म बुनते है जब,
चाँद की वादियों में तहरीरें बेजुब़ान मिलती है।
दिल भटकता है जब ख़्वाहिशों के जंगल में,
फुनगी पर ख़ाली हसरतों की दुकान मिलती है।
अधजले चाँद के टुकड़े से लिपटे अनमने बादल,
भरी यादों की गलियाँ दर्द से वीरान मिलती है।
#श्वेता🍁
दिल की बेताबियां बेजार मिलती है श्वेता को जब पढो लाजवाब मिलती है लाजवाब उम्दा गजल।
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंक्या बात है....
बेहतरीन....
सादर........
वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर श्वेता जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर श्वेता जी
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब रचना आदरणीय श्वेता जी ----- हमेशा की तरह | अनंत शुभकामनाएं आपको |
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत वाह।
जवाब देंहटाएंGreat Poem
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