जो रूह को सकूं दे ऐसा कोई शजर तो हो
बस अमन के पैगाम बसे ऐसा कोई नगर तो हो
मै तेरे घर तक आ जाऊं बड़ी खुशमिजाजी से
जो सिर्फ़ मुझे ही दिखाई दे ऐसी कोई डगर तो हो
मै कब से तरस रहा हूँ रो रहूँ चाह भी रहा
एक मर्तबा तेरे होंठो पर मेरा कोई ज़िकर तो हो
मै झुक भी जाऊं और रोज तेरा करूँ सजदा
मुझे भी उठाने की तुझको कोई फ़िकर तो हो
ख़ुद पर यकीं लाने लगूं तुझे झूम के चूमूं
मेरी ज़िन्दगी तुझमे अब कोई सहर तो हो
मै तेरी बेवफ़ाई पर भी फ़ना हो जाऊं ‘मनीष’
बस तेरे हाथों से दिया कोई जहर तो हो
वाह्ह्ह...लाज़वाब👌👌👌
जवाब देंहटाएंAwesome yaar kia baat hy dil ko chuu gaya
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जवाब देंहटाएंवाह ! सुन्दर ग़ज़ल।