फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

कोई जहर तो हो.....मनीष के. सिंह

जो रूह को सकूं दे ऐसा कोई शजर तो हो
बस अमन के पैगाम बसे ऐसा कोई नगर तो हो

मै तेरे घर तक आ जाऊं बड़ी खुशमिजाजी से
जो सिर्फ़ मुझे ही दिखाई दे ऐसी कोई डगर तो हो

मै कब से तरस रहा हूँ रो रहूँ चाह भी रहा
एक मर्तबा तेरे होंठो पर मेरा कोई ज़िकर तो हो

मै झुक भी जाऊं और रोज तेरा करूँ सजदा
मुझे भी उठाने की तुझको कोई फ़िकर तो हो

ख़ुद पर यकीं लाने लगूं तुझे झूम के चूमूं
मेरी ज़िन्दगी तुझमे अब कोई सहर तो हो

मै तेरी बेवफ़ाई पर भी फ़ना हो जाऊं ‘मनीष’
बस तेरे हाथों से दिया कोई जहर तो हो


3 टिप्‍पणियां:

14...बेताल पच्चीसी....चोर क्यों रोया

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?” अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक सा...