उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
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ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
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जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।
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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
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एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
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इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
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वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
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तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
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मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।
-बशीर बद्र
बशीर बद्र की बात ही कुछ और है !
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह...आभार आपका दी...बहुत ही उम्दा...।
जवाब देंहटाएंअज़ीम शायर डॉक्टर बशीर बद्र साहब के चुनिंदा शेर एक साथ विविधा पर साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार। नब्बे के दसक के आरम्भ में हुए दंगों के बाद इनका शेर -
जवाब देंहटाएं"लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।"
बेतहासा चर्चित हुआ।
शुक्रिया इन शेरों को साझा करने के लिए । सभी याद रह जाने वाले शेर हैं खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंउतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
जवाब देंहटाएंतुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है।
बहुत सुंदर प्रस्तुति। वाह
बहुत खूबसूरत शेर
जवाब देंहटाएंलाजवाब हैं बशीर ।
जवाब देंहटाएंपद्मश्री बशीर साहब को सलाम पहुंचे
जवाब देंहटाएंसभी किस्म की श़ायरी उनकी कलम प्रसवित कर चुकी है
आदर सहित
दे तू चंद लम्हे मुझे उधार
जवाब देंहटाएंताकी जी भरकर के तो देख लू तुझे
बहुत खूब