आशायें मेरी आँखों में हैं
आज शिशु -सी उमड़ रही,
अभी-अभी पग दो ही चले
और व्यग्र-व्यथित-सी घुमड़ रही।
अनजाना, अनजानी राह पे
समझ भरा मेरा काम न था,
ख़ैर, चलो मैं इस जीवन से
जो हासिल कर पाया हूँ,
है अभिमान जो कुछ करता मैं
सब उस की आँखों में हैं
आज शिशु-सा उमड़ रहा हूँ ।
अभी उठाया है पग मैंने
चलने की शुरुआत की है,
तम में घिरा हुआ था कल तक
दिन में नया प्रभात किया है।
सम मेरे गम की आंधी में
कई जीवन है उजाड़ रही ,
पर आशायें मेरी आँखों में
आज शिशु-सा उमड़ रहा हूँ ।
-आनंद कुमार राय
सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआशायें मेरी आँखों में हैं
जवाब देंहटाएंआज शिशु -सी उमड़ रही,
अभी-अभी पग दो ही चले
और व्यग्र-व्यथित-सी घुमड़ रही..
Waahhhhh। बहुत ही उम्दा