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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

डर.......सुधीर सिंह "सुधाकर"

अपनों से अब डर नहीं लगता
पड़ोसी फिर भी ज़रूर सताते हैं
बच्चों का डर सताता है
कहीं वह ख़ुद से दूर न कर दें 
पत्नी तो अब रहती है गुर्राती 
न जाने कौन से जन्म का बैर है 
दुनियां उड़ाती है जब भी उपहास 
सच कहूँ अब डर नहीं लगता
-सुधीर सिंह "सुधाकर"

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या बात है, अब डर नही लगता।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-04-2017) को बैशाखी- "नाच रहा इंसान" (चर्चा अंक-2939) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    बैशाखी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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