हम दोनों हैं
पूर्ण
मगर फिर भी
रीते से
बहुत तुम्हे
जाना पहचाना
फिर भी
अनचीन्हे से !
कभी कभी तो
यू लगता है
विस्मृति का
दौरा पड़ता है
सब कुछ
खाली खाली सा है
नहीँ कहीँ कुछ
अपना सा है !
क्या हम
फिर जी
पायेंगे
एक दूजे से
मिल पायेंगे
टूटी फूटी
सोचो को हम
कब तक
सहलायेंगे !
चलो .....
एक प्रयास
और
कर डाले
फिर मधुमय
मधुरात्रि मना ले
अपने मानस को
जीवित कर
अमृत घट
पिलवा दें !
डॉ .इन्दिरा गुप्ता ✍
सुंदर!!!!
जवाब देंहटाएं🙏आभार
हटाएंबहुत बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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