शब्द अब
बिकने लगे है मंडियों में उत्पाद बन कर.
और बिचौलियों के समूह आ खड़े होते हैं
उनके दाम आंकने के लिये,
अपने-अपने लेबल और अपनी पैकिंग के साथ!
स्तुति और प्रशस्तियों के ख़ुशामद
और गिड़गिड़ाहट के दम्भ
और दावों के शब्दों के वार
शब्दों की ढाल
शब्दों की आग में
शब्दों का घी।
सब कुछ बाज़ारू तरीके से
आयोजित हो जाता है।
रैलियां और धरनें लूट और घेराव,
भजन-कीर्तन और फैशन शो,
सांस्कृतिक और साहित्यिक जमावड़े भी।
हंसी और आँसू,
व्यंग्य और क्रोध,
प्रेम और अनुराग के शब्द,
निर्देशित होकर
सही वक्त/ सही सांचे मे,
फिट किये जाने के बाद,
क्या भौंकना ही
मौलिक रह जायेगा।
-श्रीमती डॉ. प्रभा मुजुमदार
आप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंशब्द नही है...खूबसूरत रचना
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