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गुरुवार, 23 नवंबर 2017

खामोश जुबाँ .....डॉ. इन्दिरा गुप्ता


खामोश जुबाँ 
खामोश नजर 
खामोश 
बसर खामोश ! 

खामोशी के 
मंजर का 
हर पल है 
खामोश ! 

चाँद - चाँदनी 
मौन साधक से 
शबनम भी बहती 
खमोश ! 


नील गगन से 
निशब्द धरा तक 
हर जर्रा 
खामोश !
डॉ. इन्दिरा गुप्ता

20 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut sunder rachna Indiraji...
    Aap ki khamoshi bhi bahut kuch kahe jati hai...
    Nishabd kar jati hai.....

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    उत्तर
    1. खमोशी को जो पढ़ जाये वही सुपाठ्क और विचारक होता है आभार

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. शुक्रिया नीतू ज़ी ...��������
      बिन शब्द बिन बात करे
      जो खमोशी पढ़ जाय
      ऐसे सहज स्नेह को
      कोई क्या कह के बुलाय!
      नमन

      हटाएं
  3. वाह!!! मीता अत्योत्तम।
    खामोश फिजा
    खामोश हवा
    खामोश सजर है
    लो चांद झुक आया देखने
    क्यों सब खामोश है।
    शुभ संध्या मीता।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. काव्य की काव्य ही प्रतिक्रिया
      हिय की बात कह जाये
      नहीँ कहीँ वो भी सुनले
      जो कह दी उसकी क्या परवाह

      हटाएं
  4. जी बेहतरीन...खामोश जुंबा,खामोशी से कहता है,अपनी अर्तमन् की पीड़ा... जी बहुत अच्छी कविता..!!

    जवाब देंहटाएं
  5. खामोशी से हर बात कह दी आपने.... लाजवाब रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. खामोशी की भी
    होती है..
    परिभाषाएँ...
    कभी मुखर होकर
    तो कभी चुप्पी साधकर
    और कभी आँखों से भी
    परिभाषित हो जाती है
    खामोशी....
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह! खामोशी को न्यूनतम शब्दों में भावात्मक एकता के साथ परिभाषित करना आप की कलात्मकता का अनुपम उदाहरण है। खामोशी भी कभी-कभी बाजार होती है कभी-कभी पाषाण से भी कठोर। उत्कृष्ट रचना। बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  8. खामोश जुबाँ
    खामोश नजर
    खामोश
    बसर खामोश !

    Wahhhhhh। बेहद दिलकश। आपकी संज़ीदा रचना पढ़कर ज़का सिद्दीक़ी जी की ग़ज़ल का मतला याद आ गया कि-

    ख़ामोशी ख़ुद अपनी सदा हो ऐसा भी हो सकता है
    सन्नटा ही गूँज रहा हो ऐसा भी हो सकता है..

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  9. चाँद चाँदनी
    मौन साधक से
    शबनम भी बहती
    खामोश
    वाह!!!!
    लाजवाब अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  10. ख़ामोशी की प्रखर आवाज - मन को बहुत कुछ सुना जाती है |सादर --

    जवाब देंहटाएं
  11. खामोशी और मौन अंतस के दरवाजों को खोल जाते हैं...और तब प्रवेश करती है सृजन की शक्ति !!!
    शोरगुल में भला कौन रहना चाहता है....
    सुंदर आशयसंपन्न रचना । सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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