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रविवार, 29 अक्टूबर 2017

कहती है मुझसे मधुशाला...नीतू ठाकुर


कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला, तू मेरा स्वीकार ना कर

इज्जत, शोहरत,सुख और शांति किस्तों में लुट जाती है 
मिट जाती है भाग्य की रेखा जब मुझसे टकराती है
पावन गंगा जल भी मुझमे मिलकर विष बन जाता है 
जो भी पीता है ये प्याला नशा उसे पी जाता है 
   
 कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला, तू मेरा स्वीकार ना कर

मेरी सोहबत में ना जाने कितने घर बर्बाद हुए
छोड़ गए जो तनहा मुझको वो सारे आबाद हुए 
ऐसा दोष हूँ जीवन का जीवन को दोष बनाती हूँ 
प्रीत लगाता है जो मुझसे उसका चैन चुराती हूँ  

कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला, तू मेरा स्वीकार ना कर

भूले भटके जग से हारे पास मेरे जब आते है 
मीठे जहर के छोटे प्याले उनका मन ललचाते है 
बाहेक गया जो इस मस्ती में उसका जीवन नाश हुआ 
समझ ना पाया वो खुद भी कैसे वो इसका दास हुआ 

कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला, तू मेरा स्वीकार ना कर

गाढे मेहनत की ये कमाई ऐसे नहीं लुटाते है 
लड़ते है हालत से डटकर वही नाम कर जाते है 
बाहेक नहीं सकता तू ऐसे तू घर का रखवाला है 
एक तरफ है जीवन तेरा एक तरफ ये प्याला है 

कहती है मुझसे मधुशाला, मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
                                  
 -नीतू रजनीश ठाकुर 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सर्व प्रथम रचना स्वीकार करने के लिए बहोत सारा आभार,
    आप की यही उदारता मुझे बार बार विविधा की ओर खींचती है
    तहे दिल से शुक्रिया

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. आभार.....तहे दिल से शुक्रिया

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