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रविवार, 3 दिसंबर 2017

मेरी रैना क्यों काली .....नीतू ठाकुर

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शर्म से लाल 
सूरज के दो गाल
साँझ मुस्काये 

सूर्य को लाली 
मेरी रैना क्यों काली 
चाँद जो रूठा 

नील गगन
एकाकी मन मेरा 
किसने देखा 

हुआ अँधेरा 
जुगनू जो चमके 
लगी कतार 

दीवानी रात
ढूंढ रही चंदा को 
तारे मुस्काये 

तड़प रही 
रात भर चाँद को 
कौन बताये 

लौटा जो चाँद 
रात को समझाया 
तू मेरा साया 

फिर से सजी 
नई रात सुहानी
शर्म से पानी 

-नीतू ठाकुर 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-12-2017) को "शुभ प्रभात" (चर्चा अंक-2807) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ...
    बहुत ही उम्दा हाइकू ... रात, चाँद, सूरज और रौशनी के खेल के बीच कुछ शब्दों की कहानी ... लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं

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