सूखे पत्ते बंजर धरती
क्या नजर नहीं आती तुमको
ये बेजुबान भूखे प्यासे
क्या खुश कर पायेंगे तुमको
हे इंद्रदेव, हे वरुणदेव
किस भोग विलास में खोये हो
या किसी अप्सरा की गोदी में
सर रखकर तुम सोये हो
करते है स्तुति गान तेरा
अब तो बादल बरसाओ ना
तुम देव हो ये न भूलो तुम
कुछ तो करतब दिखलाओ ना
अंधे बनकर बैठे त्रिदेव
विपदा को पल पल देख रहें
अब कौन बचाने जायेगा
मन ही मन मेँ ये सोच रहे
पत्थर की पूजा करते है
क्या पत्थर ही बन जाओगे
या कृपा करोगे दुनिया पर
जल धारा भी बरसाओगे
कर जोड़ करें तुमसे विनती
अब और कहर बरसाओ ना
तुम दया करो हम पर स्वामी
बारिश बनकर फिर आओ ना
- नीतू ठाकुर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-12-2017) को "काँच से रिश्ते" (चर्चा अंक-2833) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
क्रिसमस हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
करुण रस से ओतप्रोत बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंvery beautiful :)
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