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मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

कसमों की बंदिश....... श्वेता सिन्हा

रह रह छलकती ये आँखें है नम।
कसमों की बंदिश है बाँधे कदम।।

गिनगिन के लम्हों को कैसे जीये,
समझो न तुम बिन तन्हा है हम।

सजदे में आयत पढ़ूँ भी तो क्या,
रब में भी दिखता है तू ही सनम।

सुनो, ओ हवाओं न थामो दुपट्टा,
धड़कन को होता है उनका भरम।

मालूम हो तो सुकूं आये दिल को,
तुम बिन बिताने है कितने जनम।

ज़िद में तुम्हारी लुटा आये खुशियाँ,
गिन भी न पाओगे इतने है ग़म।


       #श्वेता🍁

17 टिप्‍पणियां:

  1. बेटीया ही क्यु बंधे कसमो के बंधन मे ।।
    समझो उसकी आवरगी को मत रहो
    आज तुम अनगिनित उलझनो मे ।।
    उड़ने दो दुप्पटे को हवाओ मे
    आज खुशी का अहसास करलो
    हृदय की धड़कनो मे ।।

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    उत्तर
    1. सादर प्रणाम चाचाजी,
      आपके आशीर्वचनों का अति आभार।
      आपका ब्लॉग नहीं दिखता,शायद आपने ब्लॉग एड्रेस गलत दिया है।कृपया सुधार लीजिए।

      आभार
      सादर।

      हटाएं
  2. मालूम हो तो सुकूं आये दिल को,
    तुम बिन बिताने है कितने जनम।

    Wahhhhh। निःशब्द हूँ आपकी इस रचना पर। माँ सरस्वती की अद्भुत कृपा है आप पर। आप सारे रंग लिखते हैं। और हर रंग बेमिसाल लिखते हैं। बहुत ही सुंदर। एकदम सुंदर

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  3. शुभ संध्या....
    बेहतरीन नज़्म..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  4. सिले हैं ये लब अब, अल्फ़ाज़ों की तंगी,
    ज़ज़्बातों की जुश्तजू, और क्या लिखे हम!!!...अद्भुत, अनिर्वचनीय, अलौकिक!!!!!!!!

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  5. वाह छुटकी...
    आँखें छलकती है
    रहती है नम
    कहती है आपसे
    अभी न जाओ सनम
    न दो कसम
    और न ही बांधो
    मेरे बढ़ते कदम

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-11-2017) को
    गुज़रे थे मेरे दिन भी कुछ माँ की इबादत में ...चर्चामंच 2775
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. प्रिय श्वेता जी -------- मन के अनुराग भरी सुंदर रचना | मन की विकलता को जिन शब्दों में बांधा आपने -- शायद आप ही चुन सकती है | उस मर्मान्तक स्थिति के नायक निष्ठुर सनम की
    निर्ममता की कोई सीमा कहाँ !!!! चाहे रब समझिये या मन के आशियाने में बिठाइए निष्ठुर की फितरत कहाँ बदलती है ? बहुत ही -- अनिर्वचनीय और दिव्य लेखन !!!!!!!सस्नेह ----------

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  8. वाह!!!
    सजदे में आयत पढू़ँ भी तो क्या
    रब में भी दिखता है तू ही सनम....
    लाजवाब.!!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह !
    अति सुंदर लयबद्ध रचना !
    जीवन में ऐसी जद्दोज़ेहद चलती रहती है।
    हमारे एहसासों से गुज़रती मनमोहक रचना।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    जवाब देंहटाएं

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