मत पूछो कितना गमगीं हूँ गंगा जी और जमुना जी
ज्यादा मैं तुमको याद नहीं हूँ गंगा जी और जमुना जी
अपने किनारों से कह दीजो आंसू तुमको रोते है
अब मैं अपना सोग-नशीं हूँ गंगा जी और जमुना जी
मैं जो बगुला बन कर बिखरा वक्त की पागल आंधी में
ज्यादा मैं तुम्हारी लहर नहीं हूँ गंगा जी और जमुना जी
अब तो यहाँ के मौसम मुझसे ऐसी उम्मीदे रखते है
जैसे हमेशा से मै यही हूँ गंगा जी और जमुना जी
अमरोहे में बान नदी के पास जो लड़का रहता था
अब वो कहाँ है? मै तो वही हूँ गंगा जी और जमुना जी
- जॉन एलिया
वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...👌
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंक्या कहने इस कलाम के।
अमरोहा में जन्मे नामचीन पाकिस्तानी शायर जॉन एलिया बहुभाषाविद थे। उनका उर्दू , अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और अँग्रेज़ी पर समान अधिकार था। व्यक्ति का अपनी जड़ों से जीवन भर भावनात्मक जुड़ाव बना रहता है।
विविधा के ज़रिये सुधि पाठकों, रचनकारों को बेहतरीन पठन सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।
लाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुन्दर कृति।
जवाब देंहटाएंवाह वाह। जॉन एलिया साहेब का तो जबाब ही नहीं। सीधी बात कहने में उनका कोई सानी नही था। उनके एक शेर का ज़िक्र करना चाहूँगा-
जवाब देंहटाएंजो देखता हूँ वही बोलने का आदी हूँ
मैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ।
सुंदर प्रस्तुति