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सोमवार, 25 सितंबर 2017

तुम अपनी हो, जग अपना है ...............भगवतीचरण वर्मा

1903-1981

तुम अपनी हो, जग अपना है
 किसका किस पर अधिकार प्रिये
 फिर दुविधा का क्या काम यहाँ
 इस पार या कि उस पार प्रिये ।

 देखो वियोग की शिशिर रात
 आँसू का हिमजल छोड़ चली
 ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस
 दिन का रक्तांचल छोड़ चली ।

 चलना है सबको छोड़ यहाँ
 अपने सुख-दुख का भार प्रिये,
करना है कर लो आज उसे
 कल पर किसका अधिकार प्रिये ।

 है आज शीत से झुलस रहे
 ये कोमल अरुण कपोल प्रिये
 अभिलाषा की मादकता से
 कर लो निज छवि का मोल प्रिये ।

 इस लेन-देन की दुनिया में
 निज को देकर सुख को ले लो,
तुम एक खिलौना बनो स्वयं
 फिर जी भर कर सुख से खेलो ।

 पल-भर जीवन, फिर सूनापन
 पल-भर तो लो हँस-बोल प्रिये
 कर लो निज प्यासे अधरों से
 प्यासे अधरों का मोल प्रिये ।

 सिहरा तन, सिहरा व्याकुल मन,
सिहरा मानस का गान प्रिये
 मेरे अस्थिर जग को दे दो
 तुम प्राणों का वरदान प्रिये ।

 भर-भरकर सूनी निःश्वासें
 देखो, सिहरा-सा आज पवन
 है ढूँढ़ रहा अविकल गति से
 मधु से पूरित मधुमय मधुवन ।

 यौवन की इस मधुशाला में
 है प्यासों का ही स्थान प्रिये
 फिर किसका भय? उन्मत्त बनो
 है प्यास यहाँ वरदान प्रिये ।

 देखो प्रकाश की रेखा ने
 वह तम में किया प्रवेश प्रिये
 तुम एक किरण बन, दे जाओ
 नव-आशा का सन्देश प्रिये ।

 अनिमेष दृगों से देख रहा
 हूँ आज तुम्हारी राह प्रिये
 है विकल साधना उमड़ पड़ी
 होंठों पर बन कर चाह प्रिये ।

 मिटनेवाला है सिसक रहा
 उसकी ममता है शेष प्रिये
 निज में लय कर उसको दे दो
 तुम जीवन का सन्देश प्रिये ।
-भगवतीचरण वर्मा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत सुंदर कविता,आभार शेयर करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-09-2017) को
    निमंत्रण बिन गई मैके, करें मां बाप अन्देखी-; चर्चामंच 2740
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. भगवती चरण वर्मा की इस कालजयी रचना पर कुछ लिखना कहाँ उचित होगा ? भाषा , शिल्प और सबसे बढ़कर भावों में बेजोड़ रचना !!! मन को रूहानी आनन्द प्रदान करती इस रचना को शेयर करने के लिए हार्दिक आभार |

    जवाब देंहटाएं
  4. कल पर किस का अधिकार प्रिय ... भगवती चरण जी की अनमोल रचना को रखने का आभार ... हर भाव में उत्तम रचना ...

    जवाब देंहटाएं

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