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मंगलवार, 26 सितंबर 2017

सियासत.........अमित जैन 'मौलिक'


पत्थर दिल में इश्क़ की चाहत, धीरे धीरे आती है। 
शाम ढले ख़्वाबों की आहट, धीरे धीरे आती है।

नया नवेला इश्क़ किया है, तुम भी नाज़ उठाओगे
रंज-तंज़ फ़रियाद शिक़ायत, धीरे धीरे आती है।

तुम तो आओ सब आयेंगे, चांद सितारे तितली फूल
ज़ीनत मस्ती ज़िया शरारत, धीरे धीरे आती है।

ज़हर ख़ुरानी दाँव पेंच सब, लोग सिखाने आयेंगे
अगुआई कर हुनर सियासत, धीरे धीरे आती है।

यार बनाया है ना तूने, साँझे में इक सौदा कर
खुदगर्ज़ी इमकाने अदावत, धीरे धीरे आती है। 

चार अज़ानें पूरी करके, फ़ेहरिश्त भी पढ़ आये?
फ़ज़ल खुदाई मेहर इनायत, धीरे धीरे आती है। 
-अमित जैन 'मौलिक'

3 टिप्‍पणियां:

  1. गज़ब का मतला है ... फिर उसके बाद हर शेर लाजवाब है ... बेहतरीन ग़ज़ल ...

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  2. मेरी रचना को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार दिव्या जी।

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  3. वाह्ह्ह...।।अमित जी की हमेशा की तरह शानदार गज़ल...बहुत ही लाज़वाब हर शेर। पढ़ते पढ़ते अनायास ही गुनगुना उठे।बधाई आपको।

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