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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

उड़ान का हौसला......कुसुम कोठारी


रोने वाले सुन आंखों मे
आंसू ना लाया कर
बस चुपचाप रोया कर
नयन पानी देख अपने भी
कतरा कर निकल जाते हैं। 

जिंदगी की आंधियां बार बार 
बुझाती रहती है जलते चराग
पर जो दे चुके भरपूर रौशनी 
उनका एहसान कभी न भूल
उस के लिए दीप बन जल। 

जिस छत तले बसर की जिंदगी 
तूफानों ने उजाड़ा उसी गुलशन को  
गुल ना कली ना कोई महका गूंचा
बिखरी पंखुरियों का मातम ना कर
फिर एक उड़ान का हौसला रख ।

सुख के वो बीते पल औ लम्हात
नफासत से बचाना यादों मे
खुशी की सौगातें बाधं रखना गांठ
नाजुक सा दिल बस साफ रहे 
मासूमियत की हंसी होंठों पे सजी रहे।
 -कुसुम कोठारी

15 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर....शब्दों का चयन बेहतरीन

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  2. सखी यशोदा जी बहुत सा आभार आपकी त्वरित तत्परता को नमन आप का नये रचनाकारों के प्रति साहोदर्य का भाव काबिले तारीफ है।
    मेरी रचना को विविधा के माध्यम से प्रकाशित करने के लिये पुनः सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-04-2017) को "झटका और हलाल... " (चर्चा अंक-2933) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एक प्रत्याशी, एक सीट, एक बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं
  5. नयन पानी देख अपने भी
    कतरा कर निकल जाते हैं।
    बहुत लाजवाब....
    सुन्दर सीख देती रचना...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

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