मौत को अपना आशना रक्खें
ज़िन्दगी से भी वास्ता रक्खें
चाँद आ तो गया मेरे घर में
चाँदनी इसकी हम कहाँ रक्खें
शाइरी सुनना कोई खेल नहीं
शेर पर ही मुलाहिज़ा रक्खें
प्यास दरिया बुझा नही सकता
इसलिए पास में कुआँ रक्खें
पेड़ तहज़ीब का पड़ा जख़्मी
पूर्वजों इसपे कुछ दुआ रक्खें
तू बुलंदी दिखा रहा मुझको
ज़ेब में हम तो आसमाँ रक्खें
-मनी यादव
वाह्ह्ह.....क्या बात...👌👌बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंतू बुलंदी दिखा रहा मुझको
जवाब देंहटाएंज़ेब में हम तो आसमाँ रक्खें
वाह....क्या शेर है..
सादर
उम्दा लेखन !!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।
बधाई।
उम्दा प्रस्तुतीकरण।
बहुत खूब
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